व्यास — एक मूक क्रांतिकारी




 व्यास — एक मूक क्रांतिकारी

जब महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने देखा कि वेदों का ज्ञान समाज के सभी वर्गों तक सुलभ नहीं है, तब उन्होंने एक ज्ञान-क्रांति की शुरुआत की।

वेद, जो मुख्यतः मौखिक परंपरा के माध्यम से चलते आ रहे थे, उनका सामाजिक विस्तार बहुत सीमित था। ऐसे में वेदव्यास जी ने इस दिव्य ज्ञान को व्यवस्थित और लिपिबद्ध रूप में प्रस्तुत किया — और इस प्रकार उन्होंने १८ उपनिषदों की रचना की, जिनमें आत्मा-तत्त्व और वेदांत दर्शन का गूढ़ विवेचन किया गया।


किन्तु शीघ्र ही उन्हें यह अनुभूति हुई कि उपनिषदों का दार्शनिक गूढ़ार्थ सामान्य जन के लिए समझना सरल नहीं है। तब उन्होंने एक और क्रांति का सूत्रपात किया — पुराणों की रचना।

पुराणों के माध्यम से उन्होंने कथाओं की शैली अपनाकर धर्म, ज्ञान और जीवन मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाया। इन कहानियों ने न केवल समाज को बुराइयों से बचाया, बल्कि एकता, सद्भाव और अध्यात्म की ओर भी अग्रसर किया।


वेदव्यास जी ने ब्रह्म-तत्त्व को समझाने के लिए कभी शिव, कभी नारायण, तो कभी देवी के रूप में ईश्वर का वर्णन किया — ताकि हर व्यक्ति अपनी भावना और आस्था के अनुसार ईश्वर का साक्षात्कार कर सके। उनका उद्देश्य था —

"सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय।"

परन्तु उनका योगदान यहीं तक सीमित नहीं रहा।

उन्होंने समाज की असमानता, अन्याय और राजनीतिक संघर्षों को गहराई से समझा और इनसे उबरने हेतु एक महाकाव्य की रचना की — महाभारत।

यह न केवल एक युद्धगाथा है, बल्कि जीवन के संघर्ष, कर्तव्यों और धर्म-संकटों का दर्पण है। इसी महाभारत का अमूल्य रत्न है — भगवद्गीता, जो आज भी संपूर्ण विश्व में जीवन का आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर रही है।


व्यास जी की रचनाएं केवल ग्रंथ नहीं थीं, बल्कि एक संस्कृतिक पुनर्जागरण थीं। उनके अनुयायी, जैसे कथावाचक, ऋषिगण और गुरुओं ने इन ज्ञानवाणी को युगों-युगों तक लोक में प्रसारित किया।

इसलिए वेदव्यास केवल एक लेखक नहीं, बल्कि ज्ञान के योद्धा थे — एक ऐसे मूक क्रांतिकारी, जिन्होंने शब्दों के माध्यम से संस्कृति का पुनर्निर्माण किया।


व्यास ने कभी तलवार नहीं उठाई — उन्होंने शब्द उठाए, और उन्हीं से सभ्यता को जीवित रखा।

आज भी यदि हम उनकी रचनाओं को पढ़ें, समझें और जीवन में अपनाएँ —

तो कई समस्याओं का समाधान बिना युद्ध, बिना विवाद, सिर्फ ज्ञान और समझदारी से हो सकता है।

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